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हमारे अफसर आदमखोर / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
टैक्सों की भरमार-
हमारी करती है सरकार!
जीवन का अधिकार-
हमारी हरती है सरकार!!
होती है कम आय,
हमारा घटता है व्यवसाय!
होता है अन्याय,
हमारा लुटता है समुदाय!!
करते हैं व्यभिचार-
हमारे अफसर आदमखोर!
हम तो हैं लाचार,
हमारे अफसर हैं झकझोर!!
गायें कैसे गान?
हमारी दुर्बल है मुसकान!
जीवन है अपमान,
हमारी निर्बल है संतान!!
रचनाकाल: १३-१०-१९५४