भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमारे दिल को सूना कर गये हो / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे दिल को सूना कर गये हो
सभी कहते खुदा के घर गये हो

जिसे कहते रहे हो दिल हमारा
चलाकर क्यों वहीं नश्तर गये हो

तुम्ही पतवार तुम ही नाखुदा थे
मेरे हालात कर बदतर गये हो

कभी सोचा न था ऐसा भी होगा
दिखाकर जो अजब मंजर गये हो

अभी भी राह तकते हैं तुम्हारी
जिन्हें तुम यूं अकेला कर गये हो