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हमारे देश के उत्थान की जब बात होती है / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
हमारे देश के उत्थान की जब बात होती है
कहीं सूखा, कहीं पर खोखली बरसात होती है
ग़रीबों की बुझी आँखों में दिखलाई नहीं देता
अँधेरी खोह के भीतर हमेशा रात होती है
कभी छप्पर उड़ा देना, कभी दीये बुझा देना
हमें मालूम है आँधी की जो औक़ात होती है
यतीमों की वहाँ मैयत को कंधे भी नहीं मिलते
अमीरों के जनाजे़ में यहाँ बारात होती है
भले वे शक्तिशाली हैं मगर देखा यही जाता
कि नन्हीं चींटियों से हाथियों की मात होती है