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हमारे समय में प्यार / कात्यायनी
Kavita Kosh से
जादुई रस्सी की सीढ़ी आसमान से लटक रही है
(यह धरती को नहीं छूती
मान्यता है कि धरती को छूते ही यह विलुप्त हो जाएगी हवा में
या राख होकर झड़ जाएगी)
इस सीढ़ी से ऊपर चढ़ता है एक उतावला बच्चा
और आँसू की एक जमी हुई बूँद तक पहुँचता है
जो दूर से तारे के मानिन्द चमक रहा था।
देवदारु के जंगलों में आदमक़द आईने खड़े किए जाते हैं
रोशनी की एक किरण हिमशिलाओं से टकराकर आईने तक आती है
और फिर परावर्तित होकर गरुड़ शिशुओं को अन्धा कर देती है।
ठीक इसी समय सुनाई देती हैं घोड़ों की टापें,
बर्बर विचारों का हमला हो चुका होता है।