भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हमीं तो देश हैं, बाकी जो हैं सब देशद्रोही हैं / मुकुल सरल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हमारे राज में
फूलों में ख़ुशबू !
कुफ़्र है ये तो !

हमारे राज में
शम्माँ है रौशन !
कुफ़्र है ये तो !

हमारे राज में
कोयल भला ये
कैसे गाती है ?
कोई जासूस लगती है
किसे ये भेद बताती है ?

हमारे राज में
क्यों तारे चमके ?
चाँद क्यों निकला ?
दिलों में रौशनी कैसी !
ये सूरज क्यों भला चमका ?

हमारा राज है तो
बस अँधेरा ही रहे कायम
हरेक आँख में आँसू हो
लब पे चुप रहे हरदम

हमारे राज में
तारे बुझा दो
सूरज गुल कर दो
हवा के तेवर तीख़े हैं
हवा पे साँकले धर दो

हमारा लफ़्ज़े-आख़िर है
हमारी ही हुकूमत है
हमारे से जुदा हो सच कोई
ये तो बग़ावत है

हमारे राज में ये कौन साज़िश कर रहा देखो
हमारे राज में ये कौन जुंबिश कर रहा देखो

ये कौन लोग हैं जो आज भी मुस्कुराते हैं
ये कौन लोग हैं जो ज़िंदगी के गीत गाते हैं
ये कौन लोग हैं मरते नहीं जो मौत के भी बाद
ये कौन लोग हैं हक़ की सदा करते हैं ज़िंदाबाद

ज़रा तुम ढूँढ कर लाओ हमारे ऐ सिपाहियो
इन्हे जेलों में डालो और ख़ूब यातनाएँ दो
अगर फिर भी न माने तो इन्हे फाँसी चढ़ा दो तुम
इन्हे ज़िंदा जला दो तुम, समंदर में बहा दो तुम

हमारा राज है आख़िर
किसी का सर उठा क्यों हो
ये इतनी फौज क्यों रखी है
ज़रा तो डर किसी को हो

हमारी लूट पर बोले कोई
ये किसकी जुर्रत है
हमें झूठा कहे कोई
सरासर ये हिमाक़त है

ये कौन जनता के वकील हैं
जनता के डाक्टर
ये कौन सच के कलमकार हैं
दीवाने मास्टर

हमारे से अलग सोचें जो वो सब राजद्रोही हैं
हमीं तो देश हैं, बाकी जो हैं सब देशद्रोही हैं