भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हमें मंजूर है / सरिता महाबलेश्वर सैल
Kavita Kosh से
हमें मंजूर है सीप बनकर रेत में दफन होना
शर्त फ़क़त इतनी-सी है तुम मोती बन चमको
हमें मंजूर है बीज बन मिट्टी में दफन होना
शर्त फ़क़त इतनी-सी है तुम फूल बन महकना
हमें मंजूर है मेघ बन पानी में घुल जाना
शर्त फ़क़त इतनी-सी है तुम वृक्ष बन लहलहाना
हमें मंजूर है सूखे पत्ते बन धरा पर बिछ जाना
शर्त फ़क़त इतनी-सी है उस राह से तुम गुजरना
हमें मंजूर है तेरे लिये स्वर्ग कि तलाश में मर जाना
शर्त फ़क़त इतनी-सी है उसे मुक्कमल न तू करना