हमेशा रँग बदलने की कलाकारी नहीं आती / वशिष्ठ अनूप
हमेशा रँग बदलने की कलाकारी नहीं आती,
बदलते दौर की मुझको अदाकारी नहीं आती।
जिसे तहज़ीब कहते हैं, वह आते-आते आती है,
फ़क़त दौलत के बलबूते रवादारी नहीं आती।
निगाहों में निगाहें डाल सच कहने की आदत है,
ज़माने की तरह से मुझको ऐयारी नहीं आती।
हज़ारों महल बनवा लो, बहुत-सी गाड़ियाँ ले लो,
अगर किरदार बौना है, तो ख़ुद्दारी नहीं आती।
कभी घनघोर अँधियारा भी जीवन में ज़रूरी है,
अमावस के बिना पूनम की उजियारी नहीं आती।
बुढ़ापा सब पर आता है, बुढ़ापा सब पर आयेगा,
भले होते हैं गर बच्चे, तो लाचारी नहीं आती।
क़लम के साथ ही हाथों में मेरे फावड़ा आया,
सबब यह है कि मुझको अब भी गुलकारी नहीं आती।
बहुत चुपके से कोई दिल में आकर बैठ जाता है,
कभी भी सूचना देकर ये बीमारी नहीं आती।
कोई अंगार दिल को दग्ध करता है बहुत दिन तक,
न हो यह आग तो शब्दों में चिंगारी नहीं आती।