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हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं / शहराम सर्मदी

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हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं
कि तेरी ख़ूबियाँ इक और ख़ुश-ख़िसाल में हैं

तमीज़-ए-हिज्र-ओ-विसाल इस मक़ाम पर भी है
हिसाब-ए-राह-ए-मोहब्बत में गरचे हाल में हैं

कोई भी पास नहीं तो तिरा ख़याल न ग़म
ब-क़ौल-ए-पीर-ए-जहाँ-दीदा हम विसाल में हैं

बहुत ज़रूरी नहीं है कि तू सबब ठहरे
ये बात अपनी जगह हम किसी मलाल में हैं

गुज़िश्ता साल रहा जिन पे तंग अर्सा-ए-वक़्त
वो सारे ख़्वाब ब-ताबीर अब के साल में हैं