हमरा झाँझर पलनिया पर-
अभियो हरसिंगार झरेला,
ओ गछिया से-
जवना के हमार बाबा
लगवले रहस,
बाकिर, अब हम
पलनिया के दुआरी पर-
‘जटहवा’ रोप देले बानी।
पलानी से बहरा निकलि के
जब हम चाहीले-
पसीनइल सूरज से
आपन अँखिया मिलावे के,
लउक जाला हमरा-
पलानी के टटिया पर
टँगल-टटाइल घाम,
आ बाहर छितराइल
सेराइल बालूई रेगिस्तान,
जवना पर अभी काल्ह ले
हमरा बाबा के गोड़न के
निशान रहे,
शायद रात में
जंगल के मनबहक भेड़िया
ओकरा के रौद देले बाड़े स॥