भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम ऐसे आज़ाद / हरिवंशराय बच्चन
Kavita Kosh से
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल|
चांदी-सोने-हीरे-मोती से सजती गुडियाँ|
इनसे आतंकित करने की बीत गई घडियाँ|
इनसे सज धज बैठा करते जो हैं कठपुतले|
हमने तोड़ अभी फेंकी है बेडी हथकड़ियाँ||
परंपरा गत पुरखों की हमने जाग्रत की फिर से|
उठा शीश पर रक्खा हमने हिम किरीट उज्जवल|
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल||
चांदी-सोने-हीरे-मोती से सजवा छाते|
जो अपने सिर धरवाते थे वे अब शरमाते|
फूलकली बरसाने वाली टूट गई दुनिया|
वज्रों के वाहन अंबर में निर्भय घहराते||
इंद्रायुध भी एक बार जो हिम्मत से ओटे
छत्र हमारा निर्मित करते साठ कोटि करतल
हम ऐसे आज़ाद हमारा झंडा है बादल।