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हम किस हद तक भारतीय हो सकते हैं / गब्रियेला गुतीयरेज वायमुह्स / दुष्यन्त

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रात में मरना हमारे बुजुर्गो की परम्परा नहीं है
भविष्य तक थामिए अपने हाथ में शराब
मुझे प्रेम करने दो तुम्हें एक व्यस्क की तरह

हमें प्रेम करना है पिता से
जिसे पा ना सकी एक बच्चे के रूप में
हम छुपाछुपी खेलते रहे
पाश्चात्य संगीत के छठे सुर-सा तुम्हारा एहसास
क्या याद है तुम्हें!

मेरे पिता !
कभी नहीं चाहा कोई इनाम तुम्हारी उदासी के लिए
पर तुम पीते रहे तमाम शराब जो थी एज्टेक के ऊँचे पादरी की
डूरंगों के पहाडों से तुम कहोगे –
हम किस हद भारतीय हो सकते हैं
पर पिताजी आप लगते रहे हो भारतीय भारत के!
आप कैसे भारतीय थे ?

अब मेरे बच्चे कहते हैं, जब हम गुज़रते हैें भव्य ख़ानदानी फ़ेहरिस्त से तो
हमारे पुरखों ने बनाया जिन्हें, है ना?
क्योंकि सिएटल सिटी स्कूलों में जगह नहीं है मेक्सिको मूल के लोगों के लिए, मैं ने कहा
हाँ, उन्होंने किया, यह और, और भी बहुत कुछ।
जैसे घुलमिल जाते हैं सो भारतीय दूसरे भारतीयों में।

आपने कैसे कोशिश की मेरा चुम्बन लेने की मेरे पिता!
पर ले नही पाए
चुम्बन के खयाल ने धोखा खाया आपके बचपन की परम्परा से
पिता आपको पता नहीं था

पिता आप छोड गए हमें!

आप पलायन कर गए
पेण्ट की जेब में स्थित हमारी औक़ात तक जाती जुराब की तरह
विजेता की तरह
कभी ना दिखने के लिए अपने परिचितों को

औक़ात की तमाम जुराबें क्या ले जाएँगी
वहाँ तक जहाँ तुम जाता चाहते हो!
तुम किस हद तक भारतीय थे मेरे पिता!
आपने दिया अपना प्रेम मुझे
और नहीं लिया वापिस भी।

अँग्रेज़ी से अनुवाद — दुष्यन्त