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हम कुछ ऐसे टूटे मन से / विज्ञान व्रत
Kavita Kosh से
हम कुछ ऐसे टूटे मन से
जैसे शीशा बिखरे छन से
लो हम निकले उनके मन से
यानी निकले इक उलझन से
तेरा चेहरा तो अपना है
तू क्यूँ डरता है दरपन से
मेरे दिल की धड़कन को तू
सुन अपने दिल की धड़कन से
गद्दी का वारिस लौटा था
राम कहाँ लौटे थे वन से