भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है / बशीर बद्र
Kavita Kosh से
हम को भी अपनी मौत का पूरा यक़ीन है
पर दुश्मनों के मुल्क में एक महजबीन है
सर पर खड़े हैं चाँद-सितारे बहुत मगर
इन्सान का जो बोझ उठा ले ज़मीन है
ये आख़री चराग़ उसी को बुझाने दो
इस बस्ती में वो सबसे ज़ियादा हसीन है
तकिये के नीचे रखता है तस्वीर की किताब
तहरीर-ओ-गुफ़्तुगू में जो इतना मतीन है
अश्कों की तरह थम गई जज़्बों कि नागिनें
बेदार मेरे होंठों पे लफ़्ज़ों की बीन है
यारों ने जिस पे अपनी दुकानें सजाई हैं
ख़ुशबू बता रही है हमारी ज़मीन है
तफ़सील क्या बतायें हमारे भी अहद में
तादाद शाइरों की वही ’पौने तीन’ है
(१९७२)