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हम गंगा-से निर्मल हैं, हम अविरल सदा बहे / अमन चाँदपुरी

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हम गंगा-से निर्मल हैं, हम अविरल सदा बहे

सोचो, रहीं तमिस्राएँ क्यों अपने जीवन में
सुख का हंस नहीं उतरा क्यों अब तक आँगन में

धूप बिना क्यों कोई छाया का आनंद लहे

देखो, विधवा के अधरों की लाली बहक रही
मृत्यु-सेज पर पति लेटा है, फिर भी चहक रही

भूल गयी, सावित्री से यम के संकल्प ढहे

चाटुकारिता की चौखट पर हम क्योंकर जायें
राजमहल की विरुदावलि भी किस कारण गायें

हम कबीर के वंशज पद-वैभव से दूर रहे