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हम जुड़े,पर अवान्छितों की तरह / योगेन्द्र दत्त शर्मा
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हम जुड़े,पर अवान्छितों की तरह ।
पाए वरदान शापितों की तरह ।
हम उपेक्षित हैं गो की सम्मानित,
फ्रेम में हैं सुभाषितों की तरह ।
दिग्विजय की महानता ढोते,
जी रहे हैं पराजितों की तरह ।
डस गए साँप की तरह सहसा,
जो थे कल तक समर्पितों की तरह ।