भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम तो काँटे ही चुनते हैं / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


हम तो काँटे ही चुनते हैं
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं
 
जैसा अवसर वैसा गायें
श्रोता क्यों ताली न बजायें!
हम तो बस उनकी रचनायें
पढ़कर सिर धुनते है
 
तिकड़म, दलबंदी, विज्ञापन
दंभ, चाटुकारी, जन-रंजन
धन्य वही कवि इनसे प्रतिक्षण
जो ताने बुनते हैं

हम तो काँटे ही चुनते हैं
मिले फूल-फल उन्हें, लोग जिनकी पिकध्वनि सुनते हैं