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हम तो बन गेलूँ जोरू के गुलाम / सिलसिला / रणजीत दुधु

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हम तो बन गेलुँ जोरू के गुलाम
कइसे लिअउ मइया तोहर नाम

तों खिलावऽ हलें अब खिलावऽ हे ई
तो सिखावऽ हलें अब सिखावऽ हे ई
इहे हो गेल हमर चारो धाम
हम तो बन गेलुँ जोरू के गुलाम

एतना करऽ ही इनका से पियार
इनके साथे जाही हम हरदम ससुरार
भगवान से बढ़के इनके नाम
हम तो बन गेलुँ जोरू के गुलाम

इनके से पुछ पुछ के खोंखऽ ही हम
इ जे कहऽ हकी उहे देखऽ ही हम
चोबीसों घंटा हे एही हमर काम
हम तो बन गेलुँ जोरू के गुलाम

कतना करियो हम दुख के बखान
बाहर साहब ही मकुदा घर में दरवान
थरिया माँजम तभिये हमें खाम
हम तो बन गेलुँ जोरू के गुलाम

कतना कहिअउ हम मइया तबाही
तोरा से बोलना हे मनाही
जो बोल देवउ कते मार खाम
हम तो बन गेलुँ जोरू के गुलाम