Last modified on 10 अप्रैल 2010, at 17:13

हम तो रातों इस चिंता में रोए हैं / विनोद तिवारी

हम तो रातों इस चिंता में रोए हैं
अंगारों के बीज ये किसने बोए हैं

पीछे मुड़कर देखें क्या-क्या याद करे
छोटे से दिल ने लाखों ग़म ढोए हैं

नज़र जिन्हें रखनी थी बिगड़े मौसम पर
वे तो अपने रंगमहल में सोए हैं

ख़ाक-नशीनों का जीवन वह माला है
जिसमें दुख के मोती रोज़ पिरोए हैं

हम तो तिनके हैं यह सब क्यों याद रखें
सागर ने कितने जलयान डुबोए हैं