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हम तो हैं बनिया जीव राखत हैं धनिया भर / महेन्द्र मिश्र

हम तो हैं बनिया जीव राखत हैं धनिया भर
लवंग सोपारी जीरा भरे हैं दूकान में।
गोलमिरिच दालचीनी नेक सब बनियन में
हमको तो नामी लोगजानत है जहान में।
भारी डरपों तनिकों नांेकझोंक सहत नाही
आँख के तरेरे हम तो भागत हैं मकान में।
द्विज महेन्द्र रामचन्द्र सउदा कुछ लीजे नाथ
हमरा जस सच्चा नाहीं पाओगे जहान में।