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हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें / महेन्द्र मिश्र

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हम त जनलीं कि बबुआ इनाम दीहें।
हम नाहीं जनलीं कि जाने लीहें। बबुआ।
केकई कारण हम अता दुख सहतानी
लाखन सिकाइतो खूब सहलीं रे बबुआ।
बिना अपराधे हम कुटनी कहावतानी
मारि-मारि हलुआ बनवलऽ हो बबुआऽ।
कहाँ ले इनाम मिली नाम वो निशान रही
उलिटा में जानवाँ गँववली हो बबुआ।
जानकी लखनराम बन के गमन कइले
दुनिया में अजसी कइहलीं ए बबुआ।
इज्जत के पहुँच गइनीं दूधवा के माछी भइली,
एको नाहीं सरधा पुजवल ऽ ए बबुआ
केनियो के नाहीं भइनी दुनू तरफ से गइनी
सगरे से पापिनी कहइनी रे बबुआ।