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हम दुखी हो जातियता के बीमारी से / सिलसिला / रणजीत दुधु
Kavita Kosh से
हमरा दुख न´ हे अप्पन बदहाली और बेकारी से
हम दुखी ही छेत्रीयता जातियता के बीमारी से।
न´ हे अखने कोय केकरा बनल प्यारा
मिट गेल मानवता आपसी भाईचारा
सभे हे मातल पद पइसा के खुमारी से
हम दुखी ही छेत्रीयता जातियता के बीमारी से।
न´ हे जीवन में चइन के नामोनिसान
की राजा की रंक देखला हे सभे परेसान
नेता बढ़ गेल हन अब तो भिखारी से
हम दुखी ही छेत्रीयता जातियता के बीमारी से।
न´ शहर में सुरच्छा न´ गाम में आराम
जहँय देखूँ वहँय सभे के नीन होल हराम
हत्यारन भेद न´ रखे बालक विरिधा नारी से
हम दुखी ही छेत्रीयता जातियता के बीमारी से।
सान सउकत ले बिकल हे इमान धरम
एकदिन बीते इहे ऊपरवाला के रहम
गाम के गाम लहक रहल बारी-बारी से
हम दुखी ही छेत्रीयता जातियता के बीमारी से।