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हम नहीं मरेंगे / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
यह देह बुढ़ायेगी
और मरेगी
पर हम नही मरेंगे
नश्वर अभिकरणों से
यह देह बनी है
चुप हैं दशो इन्द्रियाँ
पर नेह सनी हैं
यह बोझ उठायेगी
और डरेगी
पर हम नही डरेंगे
मेरे ही रँग में तो
यह देह रँगी है
मेरे जगने से ही
यह देह जगी है
यह आग लगायेगी
और जरेगी
पर हम नही जरेंगे
मैं एक अजन्मा हूँ
सब कुछ करता हूँ
सब मुझमें मैं सब में
हर पल रहता हूँ
यह फूल खिलायेगी
और झरेगी
पर हम नही झरेंगे