भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम निकल जाएँ तो वे दुबक जाएँगे / कैलाश झा 'किंकर'
Kavita Kosh से
हम निकल जाएँ तो वे दुबक जाएँगे
चाँद-तारे नज़र में चमक जाएँगे
चाँत-तारों भरी रात होने तो दें
बाग सब फूल से ख़ुद महक जाएँगे।
प्यार की बात हमसे कभी मत करें
प्यार का नाम सुनके बहक जाएँगे।
छेड़िए मत हमें, गर शुरू हो गये
है यकीं आपके कान पक जाएँगे।
साथ देते हैं सुख में दुखों में नहीं
आज के दोस्त ग़म में सरक जाएँगे।
आज भी तो प्रतीक्षा वहाँ आपकी
बोलिए तो वहाँ कब तलक जाएँगे