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हम ने जो क़सीदों को / 'अज़हर' इनायती
Kavita Kosh से
हम ने जो क़सीदों को मुनासिब नहीं समझा
शह ने भी हमें अपना मुसाहिब नहीं समझा.
काँटे भी कुछ इस रुत में तरह-दार नहीं थे
कुछ हम ने उलझना भी मुनासिब नहीं समझा.
ख़ुद क़ातिल-ए-अक़दार-ए-शराफ़त है ज़माना
इल्ज़ाम है मैं हिफ़्ज़-ए-मरातिब नहीं समझा.
हम-असरों में ये छेड़ चली आई है 'अज़हर'
याँ 'ज़ौक़' ने ग़ालिब' को भी ग़ालिब नहीं समझा.