है अमावस रात काली और भीतर भी अँधेरा। 
हम प्रतीक्षा में खड़े हैं दीप देहरी पर जलाये। 
ध्वनि तुम्हारी पायलों की, 
दी नहीं अबतक सुनाई। 
ना ही वह पदचाप परिचित, 
पास आकर गुनगुनाई। 
जाग कर शंका खड़ी है, 
आँख में आँखे मिलाये। 
प्रश्न घेरे अर्थ को हैं
अर्थ देते हैं दुहाई। 
चित्त की जलती चिता पर व्योम के दो अश्रु छलके। 
नैन निष्ठुर स्वप्न के ही द्वार पर धूनी रमाये। 
हम प्रतीक्षा में खड़े हैं दीप देहरी पर जलाये। 
जल चुका हूँ मैं बहुत अब, 
आँख का काजल बना लो। 
भीग जाओ तन से मन तक, 
नेह का बादल बना लो। 
पतझरों की था शरण में
शूल के परिधान पहने, 
जो तुम्हे छूकर के महकूँ
रेशमी आँचल बना लो। 
बात अगले जन्म की कहना सरल थी कह गये तुम। 
रेत पर लिखने से पानी प्यास कोरी बुझ न पाये। 
हम प्रतीक्षा में खड़े है दीप देहरी पर जलाये। 
हाँथ पर बाँधी जो तुमने, 
चल रही अब तक घड़ी है। 
मन की मुँदरी में सलोनी 
छवि तुम्हारी ही जड़ी है। 
दूर रह कर जो भी काटे, 
मत विरह के दिन गिनो तुम, 
प्यार की बस एक ऋतु ही, 
उम्र से ज़्यादा बड़ी है। 
आंसुओ की आप बीती यदि नदी से कह न पाए
फिर नहीं अधिकार किस्सा ये किनारों को सुनाये। 
हम प्रतीक्षा में खड़े हैं
दीप देहरी पर जलाये।