हम बंजारे 
मारे-मारे
फिरते-रहते
गली-गली 
जलती भट्ठी
तपता लोहा
नए रंग ने
है मन मोहा
चाहें जैसा 
मोड़ें वैसा 
धरे निहाई
अली-बली
नए-नए-
औज़ार बनाएँ
नाविक के
पतवार बनाएँ 
रही कठौती
अपनी फूटी
खा भी लेते 
भुनी-जली
राहगीर मिल
ताने कसते
हम हैं फिर भी
रहते हंसते
अभी आपका 
समय सुनहरा 
जो सुन लेते
बुरी-भली