भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम मुस्काएँ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
आएँ
कितनी भी बाधाएँ
हम मुस्काएँ
उत्तर दक्षिण
पूरब पश्चिम
जात पाँत के
ऊँच नीच के
सारे भेद मिटाएँ ।
भेदभाव का
कूड़ा कुछ ने
ढोया जीवन भर है
ऐसे ही लोगों से अपने
इस भारत को डर है
हर उपवन में
फूल खिलाएँ
हर कोना महकाएँ ।
एक रहेंगे
भारत की
तब ही तकदीर बनेगी,
विविध रंगों से
मिलकर ही
सुंदर तस्वीर बनेगी_
मिटना हो तो
हम मिट जाएँ
कभी न शीश झुकाएँ ।
-0-(16-04-94-नई दुनिया 15-03-98)