भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम सत्य से जीते हैं / इधर कई दिनों से / अनिल पाण्डेय
Kavita Kosh से
यदि यही है आज के
मौसम का मिजाज
चलती राह रोकती है
प्रिय मिलन से हमें
प्रतिरोध में उसके
हम ऐलान करते हैं
हवा के रुख को मोड़ देंगे
एक दिन यहीं से
घटनाओं में घटित होने वाले
कहाँ डरते हैं
सुन लो बादल
सुन लो हवा जल अग्नि
सुन लो देश-दुनिया के
रिहायसी सुख-संपन्न
हम सत्य से जीते हैं और
सत्य पर ही मरते हैं
सत्य की खातिर
जीवन का संग्राम रचते हैं ॥