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हम सब / शमशाद इलाही अंसारी
Kavita Kosh से
यह कौन है
अभी इसी लोक में ही है
या सिधार गया परलोक
क्यों उसके शरीर को
सिर से सिर जोड़ कर
तन से तन लगा कर
एकटक होकर
बिना कुछ बोले
निशब्द से
निस्तब्ध से
पथरीली आँखों से
देख रहे हैं ये लोग
यह कौन है?
जो अपने प्राण प्रवास ऋतु पर
जोड़ गया इतने
सिर से सिर
तन से तन
हाथ से हाथ
ह्र्दय से ह्रदय
कृदन भी हुआ लयबद्ध
हमें दिखा गया
जीने के राह
फ़ूँकता रहा हमारी मृत देह में
सदियों से
अपने प्राणों का संचार
एक स्वर में
जोड़ गया हम सब को
वह जीवित था
वह मरा नहीं
हमने अभी जीना सीखा है
इस पहले कदम का स्वागत
धन्य हो वह शरीर भी
जिसे देखने उमड़ पडी थी भीड़
नर-नारी, बालक-वृद्ध
जिसने कराया अहसास
हमारे हम होने का
यह कोई शव नहीं है, मित्र
यह जल है.
रचनाकाल: अगस्त ७,२०१०