भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हम समन्दर का तला हैं, दोस्तों पोखर नहीं / गौरीशंकर आचार्य ‘अरुण’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम समन्दर का तला हैं, दोस्तों पोखर नहीं ।
हाँ नदी होकर बहे हैं, नालियाँ होकर नहीं ।

ज़िन्दगी हमने सँवारी मौत को रख सामने,
आदमी होकर जिए हैं, जानवर होकर नहीं ।

मानते हैं हम उसूलों को इबादत की तरह,
फ़र्ज़ से अपने रहे हम, बेख़बर होकर नहीं ।

हर बसर के वास्ते दिल से दुआ करते हैं हम,
दोस्त बनकर ख़ुश हुए हैं, दोस्ती खोकर नहीं ।

रास्ते हमने बुहारे आज तक सबके लिए,
प्यार बोकर ख़ुश हुए हैं, झाड़ियाँ बोकर नहीं ।

दायरे अपने सभी के हैं अलग तो क्या हुआ,
हमवतन होकर रहे हैं, हम अलग होकर नहीं ।