भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम सांचु सांचु बतलाइति / बोली बानी / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
हम सांचु सांचु बतलाइति
तुमका चहै किहानी लागै
एकु द्यास मा बघवा ब्वालै
मिसिरी जइसन बोली
जगा बेजगा लोग परे हैं
खाइ खाइ कै गोली
ऊ राजु चलावै जनता का
लेकिन मनमानी लागै
खेतु भिंजराइं बनैं बजारै
बापु होइ गवा पइसा
करिया धनु बहुतै पियार भा
बइठ बुद्धि पर भइंसा
उइकी नांदन मा जनता केरे
खून की सानी लागै
सांचु लगाये मुंह पर ताला
झूठु डहुंकि कै ब्वालै
भूखे नंगे ल्वागन केरे
सूखे हांड़ टटõालै
ऊ सावन मइहां आंधर ह्वैगा
सब कुछु धानी लागै