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हम सुपारी-से / कुँअर बेचैन

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दिन सरौता
हम सुपारी-से।

ज़िंदगी-है तश्तरी का पान
काल-घर जाता हुआ मेहमान

चार कंधों की
सवारी-से।

जन्म-अंकुर में बदलता बीज़
मृत्यु है कोई ख़रीदी चीज़

साँस वाली
रेजगारी-से।

बचपना-ज्यों सूर, कवि रसखान
है बुढ़ापा-रहिमना का ग्यान

दिन जवानी के
बिहारी-से।