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हम ही तो हैं नवगीत सखे / योगक्षेम / बृजनाथ श्रीवास्तव

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हम ही
तो हैं नवगीत सखे

बन्धु अकेले
के हम साथी
साथ तुम्हारे बतियाते हैं
गहन अँधेरे
की राहों में
दीपक बन साथ निभाते हैं

हम ही
तो हैं मनप्रीत सखे

तृषितों के हम
शीतल जल है
भूखे मजदूरों की रोटी
भाग्य लकीरें
उन हाथों की
जिन्हें मिली है किस्मत खोटी

हम ही
तो हैं जनगीत सखे

हम द्रुपदसुता
की सारी हैं
सोनागाछी की हम आहें
शोषण की
ज्वाला में दहते
हम निरीह की करुण कराहें

हम ही
तो हैं जगजीत सखे

मतवाली सत्ता
के आगे हम
गीता बनकर खड़े हुए
गहरे सागर
के मोती हम
हम सागरमाथा चढ़े हुए

हम ही
तो हैं नवगीत सखे