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हरिक शख़्स उल्फ़त का मारा हुआ है / रंजना वर्मा
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हरिक शख़्स उल्फ़त का मारा हुआ है
तभी खूबसूरत नज़ारा हुआ है
बहुत मुफ़लिसी जब सताने लगी तो
चबेना गगन का सितारा हुआ है
कभी प्यार से है नहीं पेट भरता
मुहब्बत से किसका गुजारा हुआ है
मगर कुछ कहो खूबसूरत है उल्फ़त
जमाने को इस ने सँवारा हुआ है
रहे साथ जब बदनसीबी के साये
मिला जल कुँए का भी खारा हुआ है
गरीबी अमीरी नहीं देख पाता
जमाने में दिल जिसने हारा हुआ है
तेरे अक्स को ख़्वाब में देख लेती
जिगर में तुझे ही उतारा हुआ है
रहे दूर तू मेरी आँखों से ओझल
मेरे दिल को कब ये गवारा हुआ है
चला साँवरे आ मिरी ज़िन्दगी में
तुझे ही तो दिल ने पुकारा हुआ है