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हरियाली आई / श्रीप्रसाद

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एक बार पर्वत के ऊपर
दानव एक हीं से आया
भारी सिर था, बाल बड़े थे
बड़ा भयानक वेष बनाया

उसकी सिर्फ एक आदत थी
चलता सदा कुल्हाड़ी लेकर
जो भी मिलता, उससे बातें
करता था चिल्ला-चिल्लाकर

पेड़ों का पूरा दुश्मन था
हरियाली से नफरत करता
यही चाहता, सारी धरती
वह सूखी बालू से भरता

केवल रेगिस्तान चाहता
इसीलिए काटा करता वन
हो उजाड़, हो फूल न कोई
तो खुश हो जाता उसका मन

पक्षी बोलें, कोयल गाए
वह दानव बस चिल्लाता था
उसका तो केवल विनाश से
जैसे धरती पर नाता था

अपनी इस आदत के कारण
काट-काटकर पेड़ गिराए
सब लोगों ने उसको रोका
उसको कोई क्या समझाए

काफी पेड़ कटे जब वन के
सारी नदियाँ बाढ़ें लाईं
उधर हो गई बरसा भी कम
कहीं घटाएँ भी बिलमाईं

चिंता बढ़ी आदमी की तब
सबने उस दानव को पकड़ा
बड़े-बड़े मोटे रस्सों में
उसको बुरी तरह से जकड़ा

चले फेंकने पर्वत पर से
तब दानव ने माँगी माफी
सब लोगों ने पीटा उसको
सजा इस तरह दे दी काफी

जगह-जगह फिर पेड़ लगाए
वन आए, हरियाली आई
रुकी बाढ़, आ गई घटाएँ
सुंदरता पर्वत पर छाई

बदल गया था अब दानव भी
पेड़ नहीं फिर उसने काटे
पर्वत पर रहने वालों के
उसने भी सब सुख-दुख बाँटे

बहुत पुरानी है यह घटना
सुनी सुनाई है बचपन की
आज लोग फिर पेड़ काटकर
दशा बिगाड़ रहे हैं वन की।