भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हरियालेपन की साध / माखनलाल चतुर्वेदी
Kavita Kosh से
गौरव-शिखरों! नहीं, समय की मिट्टी में मिलवाओ,
फिर विन्ध्या के मस्तक से करुणा-घन हो झरलाओ,
पृथिवी के आकर्षण के प्रतिकूल उठूँ, दिन लाओ,
जल से प्रथम मुझे आतप की किरणों में नहलाओ!
कई गुना होकर अर्पित
यह मिट्टी में मिल जाना;
हरियाला मस्ताना दाना
कहे कि तुझको जाना।
रचनाकाल: उज्जैन-१९३१