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हरी जरी जरकस की अंगिया / मालवी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

हरी जरी जरकस की अंगिया
ऊपर हाल हजारी
नजरबन्द म्हे किया हो राज
म्हारा बना छे जी राज
पांव तेरे मखमल का मोजा
मेंदी राची पांव
अंग तेरे अतलस रा जामा
सीना मोती चूर
कमर तेरे सवा लाख खा पटका
पटके में मोहर पचास
दुलमेन बहोत अजाब
गले तेरे सवा लाख की कंठी
जरद जनोई कंठी
कान तेरे दरिया पार रा मोती
सीस तेरे जरतार रा चीरा
पेंचों पेंच गुलाल
सीस तेरे फूलन्दा सेहरा
सिर झालारिया मोड़
चढ़न तेरे सवा लाख री तेजी
फलाणा राम भये असवार
पीछे तेरे बेहाल रे ढोला
नाजो रूप सरूप