भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हरी मिरचियाँ जिन्दाबाद / नारायणलाल परमार
Kavita Kosh से
हरी मिरचियाँ जिंदाबाद!
सबके मन को ललचाती,
बिकतीं एक कतार में,
लेने वाले लोग खड़े
इतवारी बाजार में!
नई तुरइयाँ जिंदाबाद!
बड़े मजे से देखो तो-
रोज तराजू पर चढ़तीं,
मच जाती है ठेलम-ठेल!
सँभल न पातीं गिर पड़तीं!
प्यारी छुइयाँ जिंदाबाद!