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हर एक ख़्वाब मुक़म्मल न हो तो अच्छा है / अलका मिश्रा
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हर एक ख़्वाब मुक़म्मल न हो तो अच्छा है
सफ़र कोई भी मुसलसल न हो तो अच्छा है
गुज़र चुकी है कई हादसों से ये दुनिया
अब और कोई भी हलचल न हो तो अच्छा है
ये आंसुओं की कहानी बयान कर देगा
सुरीली आँखों में काजल न हो तो अच्छा है
हज़ार नाग खुले घूमते हैं जंगल में
शजर की देह में सन्दल न हो तो अच्छा है
अगर यही है मुहब्बत, तो ये दुआ है मेरी
किसी भी हाल मुझे कल न हो तो अच्छा है