हर एक शख़्स का चेहरा उदास लगता है
ये शहर मेरा तबीअत-शनास लगता है
खुला हो बाग़ में जैसे कोई सफ़ेद गुलाब
वो सादा रंग निगाहो को ख़ास लगता है
सुपुर्दगी का नशा भी अजीब नश्शा है
वो सर से पाँव तिलक इल्तिमास लगता है
हवा में ख़ुशबू-ए-मौसम कहीं सिवा तो नहीं
वो पास है ये बईद-अज़-क़यास लगता है