भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायां मुझ से / ग़ालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर क़दम दूरी-ए-मंज़िल है नुमायां<ref>बरकरार</ref> मुझ से
मेरी रफ़्तार से भागे है बयाबां<ref>रेगिस्तान</ref> मुझ से

दरस-ए-उनवान-ए-तमाशा<ref>तमाशे के शीर्षक से शिक्षा लेना</ref> ब तग़ाफ़ुल ख़ुशतर
है निगह रिश्ता-ए-शीराज़ा-ए-मिज़गां<ref>पलकों को बाँधने का धागा</ref> मुझ से

वहशत-ए-आतिश<ref>आग का डर</ref>-ए-दिल से शब-ए-तनहाई में
सूरत-ए-दूद<ref>धुएं का सदृश</ref> रहा साया गुरेज़ां<ref>दूर-दूर</ref> मुझ से

ग़म-ए-उश्शाक़<ref>आशिकों का दुःख</ref>, न हो सादगी-आमोज़-ए-बुतां<ref>बुत को सादगी सिखाना</ref>
किस क़दर ख़ाना-ए-आईना है वीरां मुझ से

असर-ए-आबला<ref>छालों के होने से</ref> से जाद-ए-सहरा-ए-जुनूं<ref>उन्माद के रेगिस्तान का रस्ता</ref>
सूरत-ए-रिश्ता-ए-गौहर<ref>जैसे मोतियों की लड़ी</ref> है चिराग़ां<ref>रौशन</ref> मुझ से

बे-ख़ुदी बिस्तर-ए-तम्हीद-ए-फ़राग़त<ref>आराम की भूमिका के बिस्तर</ref> हो जो
पुर<ref>भरा हुआ</ref> है साए की तरह मेरा शबिस्तां<ref>सोने का कमरा</ref> मुझ से

शौक़-ए-दीदार में गर तू मुझे गरदन मारे
हो निगह मिस्ल-ए-गुल-ए-शमअ़<ref>शमा के फूल की तरह</ref> परेशां<ref>बिखर जाए</ref> मुझ से

बेकसी हाए-शब-ए-हिज़र की वहशत, है -है
साया ख़ुरशीद-ए-क़यामत<ref>क़यामत का सूरज</ref> में है पिनहां<ref>छुपा हुआ</ref> मुझ से

गर्दिश-ए-साग़र-ए-सद जल्वा-ए-रंगीं<ref>रंगबिरंगा प्याला सबके हाथों से गुजर रहा है</ref> तुझ से<ref>तेरे कारण</ref>
आईना-दारी-ए-यक-दीदा-ए-हैरां मुझ से

निगह-ए-गरम से इक आग टपकती है 'असद'
है चिराग़ां<ref>जलता हुआ</ref> ख़स-ओ-ख़ाशाक-ए-गुलिस्तां<ref>बाग का करकट</ref> मुझ से

कुछ अन-छपी पंक्तियां 1816 से:

बस्तन-ए-अ़हद-ए-मुहब्बत हमा ना-दानी था
चश्म-ए-नकशूदा रहा उक़दा-ए-पैमां मुझ से

आतिश-अफ़रोज़ी-ए-यक शोला-ए-ईमा तुझ से
चश्मक-आराई-ए सद-शहर चिराग़ां मुझ से

शब्दार्थ
<references/>