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हर कोई इस सोच में गुम है कोई कहीं से आये तो / ज़ाहिद अबरोल

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हर कोई इस सोच में गुम है, कोई कहीं से आए तो
उस के सर का भारी पत्थर, अपने सर पे उठाए तो

हर ख़ुशबू में तेरी ख़ुशबू, हर इक ग़म तेरा ही ग़म
इक शाइर को इससे बेहतर, कोई सनद<ref>प्रमाण-पत्र</ref> मिल जाए तो

उसका शौक़ था दरिया बन कर वो सहरा की बात करे
मेरी ज़िद थी सहरा में वो दरिया बन कर आए तो

विष की गागर सर पे उठाए, सब मुल्कों में घूम गया
भटके हुए इस बंजारे को कोई “शिव” मिल जाए तो

“ज़ाहिद” वो मुझे दुश्मन समझे, यह दूरी सर आंखों पर
लेकिन मेरी ज़ात<ref>व्यक्तित्व</ref> के हाथों, अपना आप छुड़ाए तो

शब्दार्थ
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