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हर क्षण लागै छै, आवै छोॅ / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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हर क्षण लागै छै, आवै छोॅ।

रोज नींद में चौंकी जाय छी
निरयासी केॅ द्वार निहारौं
मली-मली दोनों आँखी केॅ
ताकि तोरा देखेॅ पारौं
लेकिन तोहें दूर-दूर तक
छायो रं नै दिखलावै छोॅ।

सूनोॅ सेज पर छुच्छे यादे
जिनगी सिलवट बनलोॅ जाय छै
सुख कन्ने छै, छौर-पता नै
दुख ठामे केन्होॅ अगराय छै
सम्मुख आवै में की डर छौं
जे सपनै में बहलावै छोॅ।

की जिनगी सपनै, नींदोॅ रं
की दिन भाग में लिखलौ नै छै
भाँै छै बोहोॅ में किंछा
तैराकी जे सिखलोॅ नै छै
तोहें नदी किनारा सें ही
नै जानौ; की समझावै छोॅ।