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हर ग़ज़ल कहने का यह आधार होना चाहिये / प्रेम भारद्वाज

हर ग़ज़ल कहने का यह आधार होना चाहिए
आदमीयत का ज़रा विस्तार होना चाहिए

खाद पानी के सिवा बिरवान होने के लिए
चीकने हों पात यह आसार होना चाहिए

जब तलक गिरती नहीं दीवार इतना तो करें
खिड़कियाँ कुछ या झरोखा द्वार होना चाहिए

बदलिए माहौल या फिर कष्ट सहते सोचिए
अब चमत्कारी यहाँ अवतार होना चाहिए

परखिए औकात अपनी घोर आपद्काल या
कुछ दिनों को आदमी बेकार होना चाहिए

अश्वत्थामा ही मरा या हो महज़ हाथी मरा
हर कथा के झूठ का आधार होना चाहिए

आ रूहानी प्रेम की चर्चा करें पर शर्त है
आदमी को आदमी से प्यार होना चाहिए