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हर ग़म को अदब से दी रहने का जगह दिल में / महावीर प्रसाद ‘मधुप’

हर ग़म को अदब से दी रहने का जगह दिल में
उल्फ़त के रहे गाते, नग़्मे हर मुश्किल में

इसके है ज़ुबाँ पर दिल में है ज़ुबाँ उसके
बस फ़र्क यही तो है, अहमक और आक़िल में

तौहीन न होने दी, हिम्मत की कभी हमने
कुछ फ़र्क नहीं माना, मँझधार में, साहिल में

क्या तुमसे कहें यारो! हम ज़िन्दादिली अपनी
दीदार किया हमने, महबूब का क़ातिल में

दीवाना-ए-मंज़िल को, बढ़ने से जो रोक सके
ताक़त कहाँ है इतनी, तूफ़ाने-मुक़ाबिल में

हो बाग़ के माली को हीरे की परख कैसे
कमियाँ ही नज़र आतीं, कमज़र्फ़ को कामिल में

इक नज़रे-करम उसकी, कर शाह गदा को दे
हिम्मत हो नई पैदा, कमज़ोर में, बुज़लिद में

आएंगे चले ख़ुद ही, आशिक़ है जो परवाने
क्या काम है शमा का, इस हुस्न की झिलमिल में

क्या आज का मौसम है, महका हुआ गुलशन है
गुंजन भी ‘मधुप’ का है, इस प्यार की महफ़िल में