Last modified on 26 फ़रवरी 2024, at 12:29

हर गाँव में नगर में ईमान बिक रहा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

हर गाँव में नगर में ईमान बिक रहा है।
बिल काटता है हाकिम चुकता करे प्रजा है।

डूबी हुई हैं फसलें गेहूँ अलग सड़ा है,
भारत के जन्मदिन पर ‘सिस्टम’ की दक्षिणा है।

हल्की सी धूप में भी गलने लगा जो फ़ौरन,
उसको ही मीडिया क्यूँ सूरज बता रहा है।

हर धार ख़ुद-ब-ख़ुद है नीचे की ओर बहती,
ये कौन पंप दौलत ऊपर को खींचता है।

नेता का पुत्र नेता, मंत्री का पुत्र मंत्री,
गणतंत्र गर यही है तो राजतंत्र क्या है।

झूटे मुहावरों से हमको न अब डराओ,
आँतों को काट देगा पिद्दी का शोरबा है।