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हर घड़ी अक्से-रुख़े-यार लिए फिरती है / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
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हर घड़ी अक्से-रुख़े-यार<ref>प्रियतम के चेहरे की छवि</ref> लिए फिरती है
कितने महताब<ref>चाँद</ref> शबे-तार लिए फिरती है
सुन तो लो, देख तो लो, मानो न मानो, ऐ दिल
शामे-ग़म सैकड़ों इक़रार लिए फिरती है
है वही हल्क़ः-ए-मौहूम<ref>अस्पष्ट वृत्त</ref> मगर मौजे-नसीम<ref>हवा की लहर</ref>
तारे-गेसू में ख़मे-दार लिए फिरती है
बाग़बाँ होश केः बरहम<ref>नाराज़</ref> है मिज़ाजे-गुलशन
हर कली हाथ में तलवार लिए फिरती है
शब्दार्थ
<references/>