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हर तरफ भारी तबाही हो गई है / राकेश जोशी
Kavita Kosh से
हर तरफ भारी तबाही हो गई है
ये ज़मीं फिर आततायी हो गई है
कुछ नए क़ानून ऐसे बन गए हैं
आज भी उनकी कमाई हो गई है
जब से हम पर्वत से मिलकर आ गए हैं
ऊँट की तो जग-हँसाई हो गई है
फिर किसानों को कोई चिठ्ठी मिली है
फिर से ये धरती पराई हो गई है
मैं तुम्हारे पास आना चाहता हूँ
बीच में गहरी-सी खाई हो गई है
वो तो बच्चों को पढ़ाना चाहता है
पर बहुत महंगी पढ़ाई हो गई है