भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हर तरफ से जमा रहा है वह / श्याम कश्यप बेचैन
Kavita Kosh से
हर तरफ से जमा रहा है वह
लहरें गिन कर कमा रहा है वह
धुन में पाने के, उसको क्या मालूम
अपना क्या-क्या गुमा रहा है वह
चलती फिरती मशीन है अब तो
हाँ, कभी आत्मा रहा है वह
ऊब जाता है क्यों घड़ी भर में
मन जहाँ भी रमा रहा है वह
दोस्ती अब नहीं रही शायद
दोस्त को आज़मा रहा है वह