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हर तरफ से हार होए लगइअऽ / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
हर तरफ से हार होए लगइअऽ।
त जिनगी पहाड़ होए लगइअऽ॥
मन हुलसे आउर हो हाथ में हुनर।
त सपना सकार होए लगइअऽ॥
सांच जब निकल क बाहर अबइअऽ।
त झूठ लचार होए लगइअऽ॥
एकदमें सूखल-साखल ताल-तलेया!
परइत बरखा धार होए लगइअऽ॥